पिछले लेख “सफलता पर विजय” में हमने जाना कि हम सब सफल होना चाहते हैं जिसके लिए हमारे चेतना तो संसार में यात्रा करनी होती है अर्थात हमें कर्म के जगत में उतरना होता है| दूसरा हमने जाना कि आनंद हमारे भीतर है जिसके लिए चेतना को स्वयं के भीतर यात्रा करनी होती है, ध्यान में डूबना होता है| सफलता और आनंद; जीवन रुपी पक्षी के दो पंखों के सामान हैं और किसी एक के भी कट जाने पर जीवन का पक्षी उड़ान नहीं भर सकता और तड़पता रहता है| सफलता ओर आनंद को जीवन में बनाए रखने के लिए चेतना की बाहर और भीतर की यात्रा बहुत सुगमता से होनी चाहिए| हमने यह भी जाना कि जहाँ पीड़ा है, तनाव है, चिंता है वहीँ हमारी चेतना अटक जाती है और फिर न हम सफल हो पाते हैं और न ही आनंदित| पहले पड़ाव के रूप में हमने जाना कि हमारे तनावग्रस्त सम्बन्ध है| जब संबंधों से माधुर्यता कम होने लगती है तो हमारी सारी चेतना, हमारे सारे विचार उन्ही संबंधो पर अटक जाते है और फिर न काम में मन लगता है और न नींद ही ठीक से आती है|
इस लेख में हम जानेगे कि हमारे संबंधों में तनाव और कटुता क्यूँ आती है; और हम क्या कर सकते हैं कि हमारे संबध दिन प्रतिदिन मधुर से मधुरतम बनते चले जाएँ|
संबंधों में कडवाहट आने का मुख्य कारण
सम्बन्धों में कड़वाहट का मुख्य कारण है:
हमारा यह मानना कि मेरी सोच ही सही है और जो मेरी तरह नहीं सोच रहा, जो मुझसे भिन्न सोचता है, वह गलत है|
एक उदाहरण से समझते हैं| मेरे पास काउन्सलिंग के लिए बहुत लोग आते हैं| पत्नी कहती है मैं अपने पति से प्रेम करती हूँ, इनकी चिंता करती हूँ इसलिए इनसे फ़ोन करके इनका हाल चाल पूछती हूँ| इन्होंने समय पर खाना खाया या नहीं खाया; शाम को कितने बजे घर आयेंगे; शाम को खाने में क्या बनाऊं इत्यादि इत्यादि| यह सब जानने कि लिए मैं इन्हें फ़ोन करती हूँ| मुझे इनकी फ़िक्र है, इनसे प्रेम है लेकिन ये तो इसको समझते ही नहीं हैं| बस मुझे सारा दिन डांटते रहते हैं| नौकरों की तरह सारा दिन घर का काम करो और इनकी डांट खाओ| डॉक्टर साहब, आप ही इन्हें समझाइये|
जब पति से बात करते हैं, तो वो कहते हैं कि मेरी पत्नी सारा दिन मुझे ऑफिस में फ़ोन करके परेशान करती है| प्रेम तो सिर्फ दिखावा है, असल में वह मुझ पर शक करती है कि मैं ऑफिस में कहीं किसी लड़की के साथ तो नहीं बैठा हूँ| इसलिए बार बार फ़ोन करके पता करती है| हर बार पूछती है “क्या कर रहे हो?” ऑफिस में हूँ, काम ही कर रहा हूँ| ऑफिस में खाली बैठने की कोई तनख्वाह नहीं देता| इनको क्या पता ऑफिस में हम कितने तनाव में रहते हैं| इनका जब मन करता है फ़ोन कर देती है| फ़ोन न उठाओ तो शक कि किसी लड़की के साथ होगे इसलिए मेरा फ़ोन नहीं उठाया| ऑफिस में कई बार व्यस्त होने के कारण फ़ोन नहीं उठा पाता| घर पहुँचते ही लड़ना| सारा दिन ऑफिस में मेहनत करो और घर आओ तो वहाँ भी सुकून नहीं| शिकायते और बस सारा दिन शिकायतें|
दोनों की नजर में दूसरा गलत है| पत्नी को लगता है कि मेरा पति मेरे प्यार कि क़द्र नहीं करता और पति को लगता है कि मेरी पत्नी मुझ पर शक करती है और मुझे परेशान करती है| अब दोनों के मन में एक दुसरे के प्रति प्रेम और सम्मान कम होने लगता है और क्रोध बढ़ने लगता है| और जब क्रोध में व्यवहार करते हैं, तो सम्बन्ध दिन प्रतिदिन कटु और कटु होते जाते हैं| जीवन नरक बन जाता है| रोज लड़ाई झगडा|
याद करें जब नयी नयी शादी होती है या नया नया प्रेम होता है तो मनोरंजन के लिए दोनों ऐसी जगह जाते हैं जहां कोई और न हो और आपस में खूब सारी बातें कर सकें| परन्तु कुछ वर्षों पश्चात, मनोरंजन के लिए सिर्फ सिनेमा हाल| क्योंकि वहां साथ होने का अहसास भी है और आपस में बात करने की सुविधा भी नहीं है|
बात करने के लिए कोई भी विषय नहीं रहता| जब भी बात करते हैं वह झगडे में ही बदल जाती है| कुछ समय बाद या तो दोनों एक घर में दो अजनबियों की तरह रहने लगते हैं या फिर तलाक के लिए वर्षों अदालत के चक्कर लगाते रहते हैं| अपना कीमती समय, धन और सारी शक्ति एक दुसरे को बर्बाद करने में लगा देते हैं|
यह किसी एक घर की नहीं बल्कि लगभग हर घर की कहानी है| क्यूंकि मैं एक काउंसलर हूँ अतः, यह बात मैं अपने अनुभव से कह सकता हूँ|
अब आप विचार कीजिये कि दोनों में से कौन सही है और कौन गलत?
असल में दोनों का व्यक्तित्व अलग है, पर्सनालिटी टाइप अलग है| कोई दुसरे को परेशान करने के लिए व्यवहार नहीं कर रहा बल्कि अपने व्यक्तित्व के अनुसार, अपनी ओर से बहुत ही सहज व्यवहार कर रहा है| परन्तु क्यूंकि दोनों का व्यक्तित्व अलग है, इसलिए उसको दुसरे का व्यावहार अपने से भिन्न होने के कारण गलत लग रहा है|
इसलिए अपने संबंधों को मधुर बनाने के लिए एक दुसरे की भिन्नता का सम्मान करें| घर में एक दुसरे के साथ खुल कर बातचीत करें| दुसरे के नजरिये को समझने की कोशिश करें|
मेरे पास जब काउन्सलिंग के लिए पति पत्नी आते हैं तो मैं उनसे अक्सर कहता हूँ कि आपके शरीर भी भिन्न हैं परन्तु आपने एक दुसरे के शारीर को ग़लत नहीं कहा| बल्कि आप एक दुसरे के शरीर की भिन्न्ब्ता के कारण एक दुसरे की ओर आकर्षित हुए| इसी भिन्नता का उपयोग करते हुए आपने एक बच्चे को पैदा किया, एक सृजनात्मक कार्य किया, एक नए जीवन को जन्म दिया| इसी प्रकार यदि आप अपने विचारों की भिन्नता, अपने व्यवहारों की भिन्नता का भी सम्मान करेंगे, तो क्या यह संभव नहीं कि आप मानसिक तल पर भी सृजनात्मक हो जाएँ| परन्तु दुर्भाग्यवश आप इन भिन्नताओं को दूसरों की गलतियों की तरह देखते हैं और विध्वन्स्सत्मक रवैया अपनाते हैं और जीवन में दुःख, क्लेश और पीड़ा को भर लेते हैं|
आपको यह जानकार आश्चर्य होगा की हम बहुत जल्दी सही गलत का निर्णय कर देते हैं, दूसरों को प्रमाणपत्र भी दे देते हैं, न्यायाधीश बन जाते हैं| यानी हम तो यही मानते हैं कि हम सही हैं| अगर अपनी भाषा पर थोडा नजर डालेंगे तो स्पस्ट हो जाएगा| मान लीजिये आप कोई पिक्चर देखने गए हैं| आने के बाद आप क्या कहते हैं – यह पिक्चर अच्छी है अथवा यह पिक्चर बुरी है| हम कभी नहीं सोचते कि मैं कौन होता हूँ यह निर्णय करने वाला कि पिक्चर अच्छी है या बुरी| मैं तो सिर्फ अपने सम्बन्ध में ही वक्तव्य दे सकता हूँ| क्या यह बेहतर नहीं होगा कि मैं सिर्फ इतना कहूँ कि यह पिक्चर मुझे अच्छी लगी अथवा यह पिक्चर मुझे बुरी लगी| अगर हम थोडा गौर से देखे तो न जाने दिन में हम कितने निर्णय कर डालते हैं, हम न्यायाधीश बन जाते हैं, सब को प्रमाणपत्र देते रहते हैं| खाना अच्छा है, चाय बुरी बनी है, यह आदमी बुरा है, फलाना आदमी अच्छा है, फलाना पार्टी अच्छी है| और जब हम इस भाषा का प्रयोग करते हैं तो कहीं हमारे मन में गहरे में अपने से भिन्न विचार रखने वाला गलत लगने लगता है|
कुछ दिन प्रयोग करके देखिये| सिर्फ इतना ही कहें – मुझे भोजन अच्छा लगा क्यूंकि हो सकता है किसी दुसरे को यही भोजन अच्छा न लगे; मुझे चाय बुरी लगी, हो सकता है किसी दुसरे को यही चाय बहुत अच्छी लगे|
जब आप इस प्रकार की भाषा का उपयोग करेंगे, तो आप देखेंगे आपने गहरे अंतर्मन में दुसरे की भिन्नता को स्वीकार करने का सामर्थ्य आएगा|
धीरे धीरे जब आप दुसरे की भिन्नता का सम्मान करने लगेंगे, आपका मन दुसरे के प्रति प्रेम और सम्मान से भरना शुरू हो जाएगा और आप अनुभव करेंगे कि आपके व्यवहार में भी बदलाव आना शुरू हो गया है| और अंततः आप पायेंगे कि आपके संबंधों में माधुर्यता आने लगी है|
सम्बन्ध मधुर बनाने का एक सूत्र है
दूसरा गलत नहीं है, वह मुझसे भिन्न है| और दुसरे की भिन्नता का सम्मान करें|
आप अगर अपने चारों ओर नजर डाले तो आप देखेंगे प्रकृति विविध प्रकार की भिन्नताओं से भरी है| भिन्न प्रकार के फूल है, पेड़ हैं, पशु पक्षी हैं, मनुष्य हैं| अगर भिन्नता गलत होती तो प्रकृति भी एक ही प्रकार के फूल पैदा करती, एक ही फल होता, और एक से ही पेड़ पौधे होते|
सोचो ज़रा अगर प्रकृति में भिन्नता नहीं होती हो यह संसार कितना नीरस होता, कितना फीका होता, कितना बेरंग होता| प्रकृति भिन्नता का सम्मान करती है| हम भी दुसरे के विचारों की भिन्नता का सम्मान करें और अपने संबंधों को प्रेमल बनायें |
और जब आपके सम्बन्ध मधुर होंगे तो आपकी चेतना वहां नहीं अटकेगी और वह अपनी सफलता की यात्रा पर सुगमता से बाहर जा सकेगी और जब आप चाहेंगे आपकी चेतना अपने भीतर लौट सकेगी जहाँ आप आनंद अनुभव कर पायेंगे|
“सफलता पर विजय” 6 दिन का ट्रेनिंग कार्यक्रम है जिसमें आप आयें और जाने कि जीवन में कैसे सफल हों, और साथ ही कैसे हमारे सम्बन्ध मधुर हों, बुद्धि तीक्षण हो ह्रदय प्रेमल हो और आत्मा ध्यानस्थ हो| कैसे हमारे जीवन के पक्षी के दोनों पंख, सफलता और आनंद, मजबूत हों और कैसे वह ऊँची उड़ान पर निकल सके|
अगर आपके कोई प्रश्न हैं तो आप उन्हें भेज सकते हैं| अगले अंक में उन्हें लेने की कोशिश करेंगे|
डॉ. पंकज गुप्ता
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